Maharashtra Board Class 9 Hindi Lokvani Solutions Chapter 2 मैं बरतन माँगूँगा

Balbharti Maharashtra State Board Class 9 Hindi Solutions Hindi Lokvani Chapter 2 मैं बरतन माँगूँगा Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board Class 9 Hindi Lokvani Solutions Chapter 2 मैं बरतन माँगूँगा

Hindi Lokvani 9th Std Digest Chapter 2 मैं बरतन माँगूँगा Textbook Questions and Answers

1. संजाल पूर्ण कीजिए।

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए।
उत्तर:
Maharashtra Board Class 9 Hindi Lokvani Solutions Chapter 2 मैं बरतन माँगूँगा 1

2. निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्यय छाँटकर लिखिए।

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्यय छाँटकर लिखिए।
1. किताबी
2. पढ़ाकू
उत्तर:
1. प्रत्यय – ई
2. प्रत्यय – आकू

Maharashtra Board Class 9 Hindi Lokvani Solutions Chapter 2 मैं बरतन माँगूँगा

3. गद्यांश पढ़कर प्राप्त होने वाली प्रेरणा लिखिए।

प्रश्न 1.
गद्यांश पढ़कर प्राप्त होने वाली प्रेरणा लिखिए।
उत्तर:
इस गद्यांश को पढ़कर हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें अपने समय का हमेशा सदुपयोग करना चाहिए। हमें कभी-भी अपना समय पुस्तकें पढ़ने एवं अपने आवश्यक कार्य करने में ही व्यतीत करने चाहिए। समय का दुरुपयोग कभी नहीं करना चाहिए। समय के सदुपयोग से ही व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है तथा अपने जीवन में विकास कर सकता है। समय का सदुपयोग न करने से व्यक्ति का कार्य भी नहीं हो पाता और वह अन्य परेशानियों में फँस जाता है। अत: हमें पाठ के विश्वकर्मा सर से प्रेरणा लेते हुए ऐसा करना चाहिए कि हम भी अपना अमूल्य समय बर्बाद न होने दें।

4. कारण लिखिए।

प्रश्न 1.
पुस्तकों की ढेरियाँ बना रखी थी क्योंकि
उत्तर:
पुस्तकों की ढेरियाँ बना रखी थी क्योंकि कमरे में आलमारी नहीं थी।

प्रश्न 2.
मित्रों द्वारा मूर्ख समझे जाने पर भी लेखक महोदय खुश थे क्योंकि
उत्तर:
मित्रों द्वारा मूर्ख समझे जाने पर भी लेखक महोदय खुश थे क्योंकि लेखक जानते थे कि मूर्ख कौन है।

5. ‘अध्यापक के साथ विद्यार्थी का रिश्ता’ विषय पर स्वमत लिखिए।

प्रश्न 1.
‘अध्यापक के साथ विद्यार्थी का रिश्ता’ विषय पर स्वमत लिखिए।
उत्तर:
प्राचीन काल से गुरु-शिष्य का संबंध बड़ा ही गहरा और पवित्र रहा है। गुरु अपने शिष्य का सबसे बड़ा मार्गदर्शक होता है। उसके द्वारा दिए जाने वाला हर ज्ञान, शिष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। गुरु शिष्य पर आने वाली हर मुसीबत में उसका साथ देता है। इसलिए कहा गया है – गुरु बिन ज्ञान न होत है, गुरु बिन दुआ अजान। गुरु बिन इंद्रिय न सधै, गुरु बिन बढ़े न शान। शिष्य भी अपने गुरु को भगवान स्वरूप मानता है। वह गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश समझता है। गुरु के कहे हर शब्द को वह आदेश मानकर उसका पालन करता है। प्रश्न ४ (घ) गद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।

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भाषा बिंदु:

प्रश्न 1.
रचना की दृष्टि से वाक्य पहचानकर अन्य एक वाक्य लिखिए।
उत्तर:
जब पाठ्यपुस्तक पढ़ते-पढ़ते
ऊब जाओ, तब झट कोई बाहरी
रुचिकर पुस्तक पढ़ा करो।

प्रश्न 2.
जब पानी बरस रहा था, तब मैं घर के भीतर था।
उत्तर:
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लेखनीय:

प्रश्न 1.
‘कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता’ इस पर एक प्रसंग लिखकर उसे कक्षा में सुनाइए।
उत्तर:
महात्मा गाँधी ने कहा था कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता है। बल्कि इंसान की सोच बड़ी होनी चाहिए। इस वाक्य पर एक प्रसंग मुझे याद आया जो इस प्रकार है: सतीश एक बहुत ही अच्छा मकैनिक था, जो अपने काम के आगे सभी लोगों के काम को छोटा समझता था। उसको लगता था कि जो काम वह कर रहा है वही सबसे अच्छा काम है बाकी सब लोगों का काम बेकार है। एक दिन एक डॉक्टर साहब अपनी कार लेकर उसके पास आए और बोले भाई इसको देखना क्या हो गया।

वह डॉक्टर एक सर्जन थे और बड़े ही अच्छे स्वभाव के थे। सतीश भी बड़े लोगों की गाड़ियों को देखकर बहुत ही खुश होता था। गाड़ी सही करते वक्त वह डॉक्टर साहब से बोला- आप का और मेरा काम तो एक समान है, फिर भी आप मुझसे ज्यादा पैसा क्यों कमाते हैं? आप देखो न, जैसे मैं गाड़ी का इंजन खोलता हूँ उसी तरह आप भी ऑपरेशन करते हैं।

डॉक्टर साहब बहुत ही विनम्र होकर बोले, आप जो काम करते हो वे जिंदा लोगों पर नहीं करते हो, आप के काम में कुछ देर हो जाए तो आप कल कर सकते है, लेकिन मेरा काम जिंदा लोगों पर ही होता है, जिसमें आप बिलकुल भी देर नहीं कर सकते है। यह बात सुनकर सतीश को समझ में आ गया कि कोई काम बड़ा या छोटा नहीं होता है। बस इंसान की सोच बड़ी होनी चाहिए।

रचनात्मकता की ओर:

मौलिक सृजन:

प्रश्न 1.
‘नम्रता होती है जिनके पास, उनका ही होता मौलिक सृजन दिल में वास।’ इस विषय पर अन्य सुवचन तैयार कीजिए।
उत्तर:

  1. आत्मसम्मान की भावना ही नम्रता की औषधि है।
  2. नम्रता की ऊँचाई नापने के लिए ब्रह्मांड का कोई भी मापक यंत्र सक्षम नहीं।
  3. किसी महान व्यक्ति की प्रथम परीक्षा उसकी नम्रता से लेनी चाहिए।
  4. नम्रता के पीछे स्वार्थ हो, तो वह ढोंग है।
  5. जिसमें नम्रता नहीं आती, वे विद्या का पूरा सदुपयोग नहीं कर सकते।
  6. नम्रता से वे कार्य भी बन जाते हैं जो कठोरता से नहीं बन पाते।
  7. नम्रता स्वर्ग के रास्ते की कुंजी है।

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आसपास:

प्रश्न 1.
दूसरे शहर-गाँव में रहने वाले अपने मित्र को आसपास विद्यालय के अनुभव सुनाइए।
उत्तरः
मैं गर्मी की छुट्टियों में अपने ननिहाल (मामा के घर) गया। मेरे मामा का लड़का राकेश भी नौवीं में पढ़ता था। उसने मुझसे मेरे विद्यालय के बारे में पूछा तो मैंने बताया कि मेरा विद्यालय शहर के बीचों बीच है। मेरे विद्यालय में पुस्तकालय और खेल का मैदान भी है। मेरे विद्यालय में बहुत अच्छी पढ़ाई होती है। सभी अध्यापक और अध्यापिकाएँ समय पर कक्षा में आते हैं तथा अपना विषय अच्छे तरीके से पढ़ाते हैं। यदि हमें कुछ प्रश्न या सवाल समझ में नहीं आता है तो वे हमें बार-बार समझाते और अतिरिक्त कक्षा में भी पढ़ाते हैं। मेरे विद्यालय में बहुत कड़ा अनुशासन है। कोई भी अनुशासन को नहीं भंग करता है। सभी लड़के और लड़कियाँ एक साथ मिल-जुलकर रहते हैं और एक दूसरे की सहायता भी करते हैं। मेरे विद्यालय में समय-समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं इसमें सभी लड़के और लड़कियाँ भाग लेते हैं। मेरे विद्यालय में हमेशा खेल-कूद का भी आयोजन होता है तथा अनेक विद्यार्थी खेलों में भी प्रथम स्थान पाते हैं। मेरे विद्यालय का अनुशासन शिक्षा व्यवस्था तथा शिष्टाचार बहुत ही अच्छा है।

पाठ से आगे:

प्रश्न 1.
‘स्वयं अनुशासन’ पर कक्षा में चर्चा कीजिए तथा इससे संबंधित तक्तियाँ बनाइए।
उत्तर:

  • मोहन – अनुशासन क्या है?
  • श्याम – अनुशासन कुछ ऐसा है जो सभी को अच्छे से नियंत्रित करके रखता है। यह व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है और सफल बनाता है।
  • राकेश – इसकी जरूरत क्यों होती है?।
  • रमेश – जीवन में सही रास्ते पर चलने के लिए हर एक व्यक्ति में अनुशासन की बहुत जरूरत पड़ती है। अनुशासन के बिना जीवन बिल्कुल निष्क्रिय और निरर्थक हो जाता है।
  • मोहन – अनुशासन कितने प्रकार का होता है?
  • श्याम – अनुशासन दो प्रकार का होता है, एक वो जो हमें बाहरी समाज से मिलता है और दूसरा वो जो हमारे अंदर स्वयं उत्पन्न होता है।
  • राकेश – स्वयं अनुशासन का क्या अर्थ होता है?
  • रमेश – स्वयं अनुशासन का सभी व्यक्तियों के लिए अलग-अलग अर्थ होता है जैसे विद्यार्थियों के लिए इसका मतलब है सही समय पर एकाग्रता के साथ पढ़ना और दिए गए कार्य को पूरा करना।
  • सतीश – स्वयं अनुशासन की जरूरत क्यों है?
  • श्याम – हर व्यक्ति में स्व-अनुशासन की बहुत जरूरत है क्योंकि आज के आधुनिक समय में किसी को भी दूसरों को अनुशासन के लिए प्रेरित करने का समय नहीं है।
  • राकेश – क्या अभिभावक को भी स्वयं अनुशासन की जरूरत होती है।
  • रमेश – अभिभावक को स्व-अनुशासन को विकसित करने की जरूरत है क्योंकि उसी से वो अपने बच्चों को भी अनुशासन की शिक्षा दे सकते हैं। उन्हें हर समय अपने बच्चों को प्रेरित करते रहने की जरूरत पड़ती है जिससे वो दूसरों से अच्छा व्यवहार करें और हर कार्य को सही समय पर करें।

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विद्यालय में अनुशासन से संबंधित कुछ बातें:

  1. कम बोलें, धीमा बोलें तथा मीठा बोलें।
  2. सदाचार का पालन करें।
  3. अपने गुरुजन का सम्मान करें।
  4. हमेशा शिष्टता का व्यवहार करें।
  5. अपना गृहकार्य अवश्य पूरा करें।
  6. विद्यालय में आयोजित प्रतियोगिता में अवश्य भाग लें।
  7. समय पर विद्यालय आएँ।

Hindi Lokvani 9th Std Textbook Solutions Chapter 2 मैं बरतन माँगूँगा Additional Important Questions and Answers

(क) गद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।

कृति (2): शब्द-संपदा

प्रश्न 1.
लिंग परिवर्तन कीजिए।
1. दादी
2. पिता
उत्तर:
1. दादा
2. माता

प्रश्न 2.
निम्न शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
1. डर × ………….
2. विद्वान × …………..
उत्तर:
1. निडर
2. मूर्ख

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कृति (3): स्वमत अभिव्यक्ति

प्रश्न 1.
‘जीवन में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण स्थान है।’ अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
शिक्षा का हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा वह है, जो मनुष्य को ज्ञान प्रदान करने के साथ-साथ उसके हृदय एवं आत्मा का विकास करती है। शिक्षा हमारी समृद्धि में आभूषण, विपत्ति में शरण स्थान और समस्त कालों में आनंद देने वाली होती है। जीवन लक्ष्य की पूर्ति के लिए शिक्षा आवश्यक है। शिक्षा हमें स्वयं के विकास के साथ-साथ समाज और राष्ट्र के विकास के लिए भी प्रेरित करती है। शिक्षा ही मनुष्य को जीवन की विविध परिस्थितियों से समायोजन करना सीखाती है।

(ख) गद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।

कृति (1): आकलन कृति

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए।
उत्तर:
Maharashtra Board Class 9 Hindi Lokvani Solutions Chapter 2 मैं बरतन माँगूँगा 3

प्रश्न 2.
समझकर लिखिए।
विश्वकर्मा सर को इसका शौक था।
उत्तर:
पढ़ने का

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कृति (2): शब्द-संपदा

प्रश्न 1.
वचन परिवर्तन कीजिए।
1. अध्यापकगण
2. पुस्तक
उत्तर:
1. अध्यापक
2. पुस्तकें

प्रश्न 2.
समानार्थी शब्द लिखिए।
1. शौक
2. गजब
उत्तर:
1. रुचि
2. अद्भुत

(ग) गद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।

कृति (1): आकलन कृति

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए।
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित विधान सत्य है या असत्य पहचानकर लिखिए।
1. विश्वकर्मा सर का कमरा बरतनों से भरा हुआ था।
2. विषय बदलने से दिमाग में ताजगी आ जाती है।
उत्तर:
1. असत्य
2. सत्य

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प्रश्न 3.
कारण लिखिए।
लेखक के साथी उनको चिढ़ाते थे क्योंकि
उत्तर:
लेखक के साथी उनको चिढ़ाते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि लेखक इधर-उधर की पुस्तकों से समय बरबाद करते हैं।

कृति (2): शब्द-संपदा

प्रश्न 1.
गद्यांश से शब्द-युग्म शब्दों की जोड़ियाँ लिखिए।
उत्तर:
1. मंद – मंद
2. एक – एक

प्रश्न 2.
गद्यांश से विरुद्धार्थी शब्द ढूँढ़कर लिखिए।
1. खाली × …………….
2. मोटी × ……………
उत्तर:
1 भरा
2. पतली

कृति (1): आकलन कृति

प्रश्न 1.
समझकर लिखिए।
1. विश्वकर्मा सर का यह क्रम ज्यों-का-त्यों बना रहा –
2. भोजन बनाने में इतना समय लगता है –
उत्तर:
1. बरतन धोने का
2. करीब दो घंटे

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प्रश्न 2.
कारण लिखिए।
विश्वकर्मा सर हमेशा बरतन धोते थे क्योंकि
उत्तर:
विश्वकर्मा सर हमेशा बरतन धोते थे क्योंकि खाना बनाने में पूरे दो घंटे लगते हैं और बरतन धोने में सिर्फ दस मिनट।

कृति (2): शब्द-संपदा

प्रश्न 1.
समानार्थी शब्द लिखिए।
1. समय
2. खुश
उत्तर:
1. वक्त
2. प्रसन्न

प्रश्न 2.
विलोम शब्द लिखिए।
1. मित्र × ………….
2. मूर्ख × …………
उत्तर:
1. शत्रु
2. विद्वान

कृति (3): स्वमत अभिव्यक्ति

प्रश्न 1.
‘आदर्श शिक्षक’ पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
शिक्षक एक विशाल इमारत की नींव की तरह होते हैं। जिस इमारत की नींव ही कमजोर हो, तो उस इमारत का कोई भविष्य नहीं होता है। उसी तरह आदर्श शिक्षक न हो तो विद्यार्थियों का भविष्य सुरक्षित नहीं होता । शिक्षक अनुशासन प्रिय होते हैं । अपने विषय को वे इस तरह समझाने का प्रयत्न करते हैं, जिसे सामान्य से सामान्य विद्यार्थी भी समझ सकें। वे अपने विद्यार्थियों में संयम, सेवा, त्याग, सहयोग और देशभक्ति के बीज बोते हैं।

मैं बरतन माँगूँगा Summary in Hindi

लेखक-परिचय:

हमराज भट्ट हिंदी के आधुनिक साहित्यकारों में से एक है। हमराज भट्ट की बालसुलभ रचनाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। इनकी कहानियाँ, निबंध, संस्मरण विविध पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित होती रहती हैं।

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गद्य-परिचय:

आत्मकथात्मक कहानी: आत्मकथा हिंदी साहित्य में गद्य की एक विधा है। इसमें स्वयं या कहानी का कोई पात्र ‘मैं’ के माध्यम से पूरी कहानी का आत्मचित्रण करता है।

प्रस्तावना: प्रस्तुत पाठ ‘मैं बरतन माँगूंगा’ में लेखक हमराज भट्ट जी ने समय की बचत, समय का उचित उपयोग एवं
अध्ययनशीलता जैसे गुणों को दर्शाया है।

सारांश:

प्रस्तुत पाठ में लेखक ने बचपन के एक प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा है कि उन्हें बचपन में विषय के अतिरिक्त दूसरी पुस्तक पढ़ने की आदत नहीं थी। वह अपने गुरु जी के डर से पाठ्यक्रम की कविताएँ ही रट लिया करते थे। उनके पिता जी कभी पत्रिका लाते थे तो वह लेखक को पढ़ने के लिए नहीं मिलता था।

आठवीं पास करने के बाद नौवीं में पढ़ने के लिए उनके घरवालों ने उन्हें अच्छी नसीहत देकर शहर भेज दिया। उनके साथ गाँव के दो साथी और थे। तीनों एक साथ कमरा लेकर उसमें रहने लगे।

वह जिस कमरे में रहते थे उसके सामने उनके तीन अध्यापक भी रहते थे पुरोहित जी, खान साहब और विश्वकर्मा जी। तीनों अध्यापक साथ-साथ बनाते खाते थे; उनमें कोई भेदभाव नहीं था। लेखक और उनके साथियों ने गौर किया कि विश्वकर्मा सर हमेशा बरतन माँजते थे जबकि पुरोहित और खान साहब कभी बरतन नहीं माँजते थे। विश्वकर्मा सर को पढ़ने का भी शौक था। वह हर वक्त किताबों में ही डूबे रहते। उन्हें देखकर लेखक भी उनसे पुस्तकें लेकर पढ़ना चाहता था। एक दिन किसी बहाने से वह उनके कमरे में गया तो वहाँ अनेक पुस्तकों को देखा। आलमारी ना होने के कारण पुस्तकें जमीन पर ही पड़ी थी । विश्वकर्मा सर ने लेखक को देख लिया और उन्हें कुछ पुस्तकें भी पढ़ने को दी। धीरे-धीरे लेखक और विश्वकर्मा सर में खूब जमने लगी।

एक दिन लेखक ने उनसे रोज सुबह-शाम बरतन माँजने का कारण पूछा। विश्वकर्मा सर ने विस्तार से बताया, कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता। बर्तन माँजने में दस मिनट का समय लगता है जबकि खाना बनाने में दो घंटे का समय लगता है तथा धुएँ और शोर को भी सहना पड़ता है। अत: वह बरतन माँजने का काम करके १ घंटा ५० मिनट बचा लेते हैं, जिसमें वह पढ़ाई करते हैं। विश्वकर्मा सर के इस तर्क को सुनकर लेखक बहुत प्रभावित हुए और वह भी उस दिन अपने साथियों को बोले कि अब दोनों समय का बरतन मैं ही माँगूंगा और तुम दोनों खाना बनाया करो। उनके साथी उनको मूर्ख समझने लगे जबकि लेखक जानते थे कि मूर्ख कौन है।

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शब्दार्थ:

  1. पलटना – बदलना
  2. एहसास – आभास
  3. नसीहत – उपदेश, सीख
  4. चर्चा – बातचीत
  5. शौक – रुचि
  6. पढ़ाकू – पढ़नेवाला
  7. ढेरियाँ – समूह
  8. मंद – धीमा
  9. तत्काल – तुरंत
  10. रुचिकर – मनपसंद
  11. पठनीय – पढ़ने योग्य
  12. नि:संकोच – बिना संकोच के
  13. पारावार – सीमा
  14. आह्लादित – आनंदित
  15. हिदायत – निर्देश, सूचना
  16. कौर – ग्रास, निवाला
  17. गजब – अद्भुत
  18. ठाट – शान
  19. करीने – क्रम से
  20. इत्मीनान – संतोष
  21. प्रोत्साहित – उत्साहित
  22. ताजगी – नयापन
  23. स्वाध्याय – स्वयं किया गया अध्ययन

मुहावरे:

1. किताबी कीड़ा होना – केवल पढ़ने में ही लगे रहना।
2. घुड़क देना – जोर से बोलकर डराना, डाँटना।