Maharashtra Board Class 9 Hindi Lokbharti Solutions Chapter 4 किताबें

Balbharti Maharashtra State Board Class 9 Hindi Solutions Lokbharti Chapter 4 किताबें Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board Class 9 Hindi Lokbharti Solutions Chapter 4 किताबें

Hindi Lokbharti 9th Std Digest Chapter 4 किताबें Textbook Questions and Answers

संभाषणीय :

प्रश्न 1.
“सुप्रसिद्ध कवि गुलजार की अन्य किसी कविता का मौन वाचन करते हुए आनंदपूर्वक रसास्वादन कीजिए तथा निम्न मुद्दों के आधार पर केंद्रीय भाव स्पष्ट कीजिए।
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हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें
दूसरों की जय से पहले, खुद को जय करें
भेदभाव अपने दिल से साफ़ कर सकें
दोस्तों से भूल हो तो माफ़ कर सकें
झूठ से बचे रहें, सच का दम भरें
दूसरों की जय से पहले, खुद को जय करें
मुश्किलें पड़े तो हम पे इतना कर्म कर
साथ दे तो धर्म का.चले तो धर्म कर
खुद पे हौसला रहे, बदी से ना डरे
दूसरों की जय से पहले,खुद को जय करे
उत्तर:
केंद्रीय भावः इस कविता का मल संदेश है अपने मन को शक्तिशाली बनाना और उस पर विजय प्राप्त करना। इसका उद्देश्य है कि हम दूसरों पर विजय प्राप्त करने से पहले खुद पर विजय प्राप्त करें अर्थात अपने अंदर की सारी बुराइयों को दूर करें। इससे यह भाव स्पष्ट होता है कि ईश्वर हमारे मन को इतनी शक्ति दे कि हम अपने मन की बुराइयों पर विजय प्राप्त कर सकें। बिना भेदभाव किए अपने मित्रों के भूल को माफ कर सकें। झूठ से बचें और सत्य का हमेशा साथ दें। मुश्किलें आने पर भी धर्म का साथ न छोड़े। खुद का हौसला बढ़ाएँ तथा बुरे लोगों से कभी न डरें।

पठनीय :

प्रश्न 1.
पाठ्यपुस्तक की किसी एक कविता का मुखर एवं मौन वाचन कीजिए।

श्रवणीय :

प्रश्न 1.
सफदर हाश्मी रचित ‘किताबें कुछ कहना चाहती हैं’ कविता सुनिए।

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आसपास :

प्रश्न 1.
‘पुस्तकांचे गाव- भिलार’ संबंधी जानकारी समाचार पत्र/अंतरजाल आदि से प्राप्त कीजिए और उसे देखने का नियोजन कीजिए।

कल्पना पल्लवन :

प्रश्न 1.
‘ग्रंथ हमारे गुरु’ चर्चा कीजिए तथा अपने विचार लिखिए ।
उत्तर:

  • रमेश – प्रणाम गुरु जी।
  • शिक्षक – चिरायु हो, यशस्वी बनो। तुम कैसे हो?
  • रमेश – आपका आशीर्वाद है गुरु जी, मै ठीक हूँ। गुरु जी सुना है ग्रंथों में बहुत सारी ज्ञान-विज्ञान और आध्यात्म की बातें लिखी हुई हैं।
  • शिक्षक – हाँ, रमेश। ग्रंथ हमारे गुरु होते हैं। यह सदियों से हमें पीढ़ी दर पीढ़ी ज्ञान देते आए हैं।
  • संजय – यह ग्रंथ तो विद्वानों ने ही लिखा होगा।
  • शिक्षक – हाँ, इन ग्रंथों को बड़े-बड़े विद्वानों तथा धर्म के जानकारों ने लिखा है।
  • मधु – इन ग्रंथों में क्या लिखा है?
  • शिक्षक – इन ग्रंथों में मनुष्य जीवन के हर पहलू का वर्णन मिलता है। ये ग्रंथ हमें अपना जीवन अच्छी तरह से जीना सिखाते हैं। ग्रंथ हमें बताते हैं कि कैसे प्राणियों के बीच सद्भाव बना कर आनंदपूर्वक रहना चाहिए।
  • रमेश – धन्यवाद गुरुजी! आपने हम लोगों को ग्रंथों के बारे में बताया। अच्छा अब हमें अनुमति दीजिए।

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पाठ के आँगन में :

1. सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए  :

प्रश्न क.
पाठ के आधार पर वाक्य पूर्ण कीजिए :
1. किताबों की अब बनी आदत …………….
2. किताबें जो रिश्ते सुनाती थीं ……………
उत्तर:
1. किताबों की अब बनी आदत नींद में चलने की
2. किताबें जो रिश्ते सुनाती थीं घर में वो कदरें अब नजर नहीं आती

प्रश्न ख.
लिखिए :
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उत्तर:

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प्रश्न ग.
आकृति
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उत्तर:
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2. प्रथम पाँच पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।

प्रश्न 1.
प्रथम पाँच पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।
उत्तरः
किताबें मनुष्य की साथी हैं। किंतु कंप्यूटर के अधिकाधिक प्रयोग के कारण इनमें लोगों की रुचि कम होने लगी है। अब स्थिति यह है कि ये किताबें बंद अलमारी के शीशों से झाँकती हैं। बड़ी उम्मीद से शीशों के बाहर ताकती हैं। एक समय था जब मनुष्यों की शामें किताबों के संगत में व्यतीत होती थीं और अब स्थिति यह है कि महीनों तक मनुष्य और किताबों की मुलाकात नहीं होती।

पाठ से आगे :

अपने तहसील/जिले के शासकीय ग्रंथालय संबंधी जानकारी निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर प्राप्त कीजिए :
स्थापना-तिथि/वर्ष, संस्थापक का नाम, पुस्तकों की संख्या, विषयों के अनुसार वर्गीकरण

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भाषा बिंदु :

प्रश्न 1.
शब्द-युग्म पूरे करते हुए वाक्यों में प्रयोग भाषा बिंदु कीजिए।
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उत्तरः

  • घर-द्वार – पिता के डाँटने पर रमेश अपना घर-द्वार छोड़कर शहर चला गया।
  • उधड़े-उधड़े – पुस्तकालय में सही रख-रखाव न होने के कारण पुस्तकें उधड़ी-उधड़ी थीं।
  • भला-बुरा – नौकर से गमला टूट जाने के कारण मालिक उसे भला-बुरा कहने लगा।
  • प्रचार-प्रसार – आजकल हमारे देश में सफाई अभियान का प्रचार प्रसार बहुत ज़ोरों से चल रहा है।
  • भूख-प्यास – लंबी यात्रा के कारण यात्री भूख-प्यास से व्याकुल थे।
  • भोला-भाला – रामू बहुत ही भोला-भाला लड़का है।

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(क) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।

कृति (1) आकलन कृति

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए।
उत्तर:
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प्रश्न 1.
समझकर लिखिए।
i. अब मनुष्य की शामें अक्सर यहाँ बीतती हैं
ii. मनुष्य से बढ़ती दूरी के कारण किताबों की स्थिति
उत्तर:
i. कंप्यूटर के पर्यों पर।
ii. बेचैन रहती हैं।

कृति (2) आकलन कृति

प्रश्न 1.
सही विधान चुनकर पूर्ण वाक्य फिर से लिखिए।

i. किताबें झाँकती हैं …………….।
(क) कंप्यूटर के पर्यों पर
(ख) नींद में
(ग) बंद आलमारी के शीशों से।
उत्तर:
किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से

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ii. मनुष्य की शामें गुजरती हैं ……………
(क) किताबें पढ़ने में।
(ख) कंप्यूटर के पर्दो पर।
(ग) लोगों के बीच।
उत्तर:
मनुष्य की शामें गुजरती हैं कंप्यूटर के पर्दो पर

प्रश्न 3.
पद्यांश के आधार पर सही जोड़ियाँ मिलाइए।

(अ) (ब)
1. आलमारी (क) नींद में चलने की आदत।
2. कंप्यूटर (ख) मुलाकातें
3. किताबें (ग) शीशा
4. महीनों (घ) पर्दा

उत्तर:

(अ) (ब)
1. आलमारी (ग) शीशा
2. कंप्यूटर (घ) पर्दा
3. किताबें (क) नींद में चलने की आदत।
4. महीनों (ख) मुलाकातें

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(ख) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।

कृति (1) आकलन कृति

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए।
उत्तर:
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कृति (2) आकलन कृति

प्रश्न 1.
उत्तर लिखिए।
i. कंप्यूटर की विशेषता
ii. कंप्यूटर आने से किताबों की स्थिति
उत्तर:
i. क्लिक करने पर पलक झपकते ही डिजिटल पर्दे पर बहुत कुछ एक-एक करके शीघ्रता से खुल जाता है।
ii. किताबों का जो जाती राब्ता (संपर्क) था, वह कट गया।

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प्रश्न 2.
सत्य या असत्य पहचानकर लिखिए।
i. कंप्यूटर आने से पुस्तकों का सम्मान बढ़ गया।
ii. कंप्यूटर के कारण पुस्तकों से हमारा संपर्क बढ़ गया।
उत्तर:
i. असत्य
ii. असत्य

प्रश्न 3.
पद्यांश के आधार पर विधान पूर्ण कीजिए।
i. कोई सफा पलटता है तो ……………. |
ii. बहुत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है ………….. |
उत्तर:
i. कोई सफा पलटता है तो इक सिसकी निकलती है,
ii. बहुत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है परदे पर,

कृति (3) भावार्थ

निम्नलिखित पद्यांश का भावार्थ लिखिए ।

प्रश्न 1.
वह सारे …………. नहीं उगते।।
भावार्थः
कवि कंप्यूटर युग में पुस्तकों और मनुष्यों के बीच बढ़ती हुई दूरी का वर्णन करते हुए कहते हैं कि, एक समय था जब ये किताबें हमारे साथ रहकर हमें हमारे रिश्तों-संबंधों के बारे में बताती थीं। वे सारे संबंध अब उधड़ गए हैं, टूट गए हैं। अब पन्ने पलटने पर हमारे गले से करुण सिसकी निकलती है।आँखों में आँसू आ जाता है। इतना ही नहीं आज व्यक्ति और किताबों के बीच संपर्क का दायरा इतना सिमट गया है कि उनके शब्दों के मान-सम्मान गिर चुके हैं। उनके शब्द अब बिन पत्तों के सूखे-दूंठ से जीर्ण-शीर्ण लगते हैं। जिनका अब कोई मतलब (अर्थ) नहीं है।

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(ग) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।

कृति (1) आकलन कृति

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए।
उत्तर:
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कृति (2) आकलन कृति

प्रश्न 1.
समझकर लिखिए।
i. इस बहाने से रिश्ते बनते थे –
ii. इनको रिहल की सूरत बनाकर नीम सजदे पढ़ा करते थे
उत्तर:
i. किताबें गिरने उठाने के बहाने
ii. घुटनों को।

प्रश्न 2.
सत्य या असत्य पहचानकर लिखिए।
i. किताबे गोदी में रखकर लेट जाते थे।
ii. किताबों में सूखे फूल और महके हुए चिट्ठी के पन्ने मिलते थे।
उत्तर:
i. असत्य
ii. सत्य

कृति (3) भावार्थ

प्रश्न 1.
प्रथम पाँच पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।
भावार्थ:
कवि गुलजार मनुष्य और किताबों के परस्पर अपनत्व व साथ का वर्णन करते हुए कहते हैं कि, किताबें हमारी सहचरी-सहगामिनी थी। जिन्हें हम सीने पर रखकर लेट जाते थे। कभी गोदी में लेते थे। कभी-कभी घुटनों को अपने रिहल (ठावनी) की सूरत बनाकर किताबें पढ़ने का आनंद लेते थे। कभी सजदें में पढ़ा करते थे, तो कभी माथे लगाकर उसे छूते थे, ताकि किताबों का सारा ज्ञान आगे भी मिलता रहे, कभी बंद न हो।

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पद्य-विश्लेषण

  • कविता का नाम – किताबें
  • कविता की विधा – नई कविता
  • पसंदीदा पंक्ति – किताबें गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे उनका क्या होगा? वो शायद अब नहीं होंगे!!

पसंदीदा होने का कारण –
उपर्युक्त पंक्ति मुझे बेहद पसंद है क्योंकि इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने मानवीय रिश्तों की ओर संकेत किया है। आज हमारे समाज में रिश्ते बिखरते हुए प्रतीत हो रहे हैं। लोगों के दिल से रिश्तों की अहमियत कम होती दिखलाई दे रही है। किताबों के माध्यम से लोग एक-दूसरे से जुड़ जाते थे। उनमें आपसी रिश्ते पनपने लगते थे। लेकिन अब लोग किताबें पढ़ना ही नहीं चाहते। इसी आपसी बंधन को भी बरकरार रखने की यहाँ पर बात की है।

कविता से प्राप्त संदेश या प्रेरणा –
प्रस्तुत कविता से प्रेरणा मिलती हैं कि व्यक्ति को किताबों का पठन करना चाहिए। भले ही आज का युग विज्ञान एवं तकनीकी का युग है फिर भी मानव को किताबों का वाचन करना चाहिए। किताबों के जरिए ही मानवीय गुणों में वृद्धि हो सकती है। किताबों का वाचन न करने के कारण व्यक्ति में दुर्गण निर्माण हो रहे हैं। साहित्य के वाचन से ही व्यक्ति में संस्कार पनप सकते हैं इसलिए सभी को साहित्य का वाचन करना चाहिए।

किताबें Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय : गुलजार जी का जन्म पंजाब प्रांत में झेलम जिले के दीना गाँव में हुआ जो अब पाकिस्तान में है। उनका मूल नाम संपूरन सिंह कालरा है। वे एक कवि, पटकथा लेखक, फिल्म निर्देशक, नाटककार होने के साथ-साथ हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध गीतकार भी हैं।
प्रमुख कृतियाँ : लघुकथाएँ – ‘चौरस रात’, कथा संग्रह – ‘रावीपार’, कविता संग्रह – ‘रात, चाँद और मैं,’ ‘एक बूंद चाँद’, ‘रात पश्मीने की’ और ‘खराशें’ (कविता, कहानी का कोलाज)।

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पद्य-परिचय :

नई कहानी : भारतीय स्वतंत्रता के बाद लिखी गई उन कविताओं को कहा गया जिनमें परंपरागत से आगे नए भावबोधों की अभिव्यक्ति के साथ ही नए मूल्यों और नए शिल्प विधान का अन्वेषण (खोज) किया गया।
प्रस्तावना : प्रस्तुत कविता ‘किताबें’ के माध्यम से गुलजार जी ने पुस्तकें पढ़ने का आनंद, कम्प्यूटर के कारण पुस्तकों के प्रति अरुचि, पुस्तकों और मनुष्यों के बीच बढ़ती दूरी और उससे उत्पन्न दुख को बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है।

सारांश :

आज के समय में कंप्यूटर के अत्याधिक प्रयोग के कारण किताबों के प्रति लोगों की रुचि कम होने लगी है। अब किताबें अलमारी में पड़ी रहती हैं, महीनों तक मनुष्य से उनकी मुलाकात नहीं होती। वे किताबें उधड़ी हुई होती हैं। पन्ने पलटने पर उनकी करुण सिसकी निकलती है। किताबों की निरंतर उपेक्षा हो रही है। कंप्यूटर पर एक क्लिक करते ही बहुत कुछ एक-एक कर शीघ्रता से खुल जाता है। यही कारण है कि किताबों से हमारे संपर्क का दायरा कम हो गया है।

एक समय था, हम सीने पर किताबें रखकर लेट जाते थे तो कभी उन्हें माथे लगाकर प्रसन्न होते थे। एक दौर था जब किताबों के बहाने से कई रिश्तों की डोर बन जाती थी। किंतु अब किताबों के प्रति अरुचि के कारण यह रिश्ते नष्ट हो जाएँगे। उनका संपर्क टूट जाएगा और वे अपना अस्तित्व खो देंगे।

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भावार्थ :

किताबें झाँकती हैं बंद अलमारी …………….. अब अक्सर।।
किताबें मनुष्य की साथी हैं। किंतु कंप्यूटर के अधिकाधिक प्रयोग के कारण इनमें लोगों की रुचि कम होने लगी है। अब स्थिति यह है कि ये किताबें बंद अलमारी के शीशों से झाँकती हैं। बड़ी उम्मीद से शीशों के बाहर ताकती हैं। एक समय था जब मनुष्यों की शामें किताबों के संगत में व्यतीत होती थीं और अब स्थिति यह है कि महीनों तक मनुष्य और किताबों की मुलाकात नहीं होती।

गुजर जाती हैं …………. वो सुनाती थीं।।
कवि कहते हैं कि अब अक्सर मनुष्य की शामें कंप्यूटर के पर्दो पर ही बीत जाती है और उनकी साथी किताबें इस बढ़ती दूरी के कारण बड़ी ही बेचैन रहती हैं। उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है अर्थात किताबें लोगों को अब सपनें में देखती हैं। किताबें अपने ज्ञानगंगा के स्वर्णाक्षरों द्वारा मनुष्य को नैतिकता का पाठ पढ़ाती थीं। वे रिश्तों-संबंधों के मधुर गीत सुनाती थीं। किंतु जिनके मूल्य कभी नहीं मरते थे, जिनके सेल कभी खत्म नहीं होते थे, और अब कंप्यूटर के बढ़ते प्रभाव का परिणाम यह है हमें घरों में अब वह मानवीय मूल्य नहीं दिखाई देते हैं।

वह सारे ………….. मानी नहीं उगते।।
कवि कंप्यूटर युग में पुस्तकों और मनुष्यों के बीच बढ़ती हुई दूरी का वर्णन करते हुए कहते हैं कि, एक समय था जब ये किताबें हमारे साथ रहकर हमें हमारे रिश्तों-संबंधों के बारे में बताती थीं। वे सारे संबंध अब उधड़ गए हैं, टूट गए हैं। अब पन्ने पलटने पर हमारे गले से करुण सिसकी निकलती है। आँखों में आँसू आ जाता है। इतना ही नहीं आज व्यक्ति और किताबों के बीच संपर्क का दायरा इतना सिमट गया है कि उनके शब्दों के मान-सम्मान गिर चुके हैं। उनके शब्द अब बिन पत्तों के सूखे-ढूँठ से जीर्ण-शीर्ण लगते हैं। जिनका अब कोई मतलब (अर्थ) नहीं है।

जुबां पर जो …………….. कट गया है।। कवि कंप्यूटर की गति व किताबों की निरंतर होती उपेक्षा व दुर्गति के संबंध में कहते हैं कि अब एक क्लिक करने पर बस पलक झपकते ही कंप्यूटर के डिजीटल परदे पर बहुत कुछ एक-एक करके शीघ्रता से खुलता चला जाता है। इसी का परिणाम है कि किताबों के पन्ने पलटने का जो स्वाद जिहवा पर आता था, वह भी हमसे ओझल हो गया है अर्थात पन्ने पलटते समय बार-बार जीभ पर अँगली रखने का आनंद समाप्त हो गया। किताबों में रचा-बसा हमारा संपर्क व हमारे संपर्क सूत्र का दायरा भी अब बहुत कुछ सिमट गया है।

कभी सीने पे …………………… आइंदा भी।।
कवि गुलजार मनुष्य और किताबों के परस्पर अपनत्व व साथ का वर्णन करते हुए कहते हैं कि, किताबें हमारी सहचरी-सहगामिनी थी। जिन्हें हम सीने पर रखकर लेट जाते थे। कभी गोदी में लेते थे। कभी-कभी अपने घुटनों को रिहल (ठावनी) की सूरत बनाकर किताबें पढ़ने का आनंद लेते थे। कभी सजदें (प्रार्थना)में इन्हें पढ़ा करते थे, तो कभी माथे लगाकर उसे छूते थे, ताकि किताबों का सारा ज्ञान आगे भी मिलता रहे, कभी बंद न हो।

मगर वो जो ………… वह शायद अब वही होंगें !! कवि कहते हैं कि किताबों के साथ कुछ यादगार बातें भी जुड़ी हुई होती थीं। कभी-कभी लोग इन किताबों में किसी के लिए फूल या संदेश-पत्र रख दिया करते थे, किंतु किताबों में जो रखे हुए सूखे फूल और महके हुए चिट्ठी के पन्ने मिला करते थे उनका क्या होगा। कवि गुलजार जी कहते है कि एक दौर था जब किताबों के गिरने-उठाने के बहाने से कई रिश्तों की डोर बन जाती थी। किंतु अब जिस तरह से किताबों में लोगों की अरुचि उत्पन्न हुई है, उससे यह रिश्ते नष्ट होते जाएँगे । उनका संपर्क सूत्र टूट जाएगा और वे अपना अस्तित्व खोकर काल के ग्रास की भाँति खत्म हो जाएँगे।

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शब्दार्थ :

  1. झाँकती – देखती
  2. हसरत – उम्मीद
  3. मुलाकातें – मिलन
  4. सोहबत – संगत
  5. गुजरना – बीतना
  6. कदरें – मूल्य, मायने
  7. उधड़े-उधड़े – बिखरा हुआ
  8. सफा – पन्ना
  9. इक – एक
  10. लफ्जों – शब्दों
  11. मानी – मान-सम्मान, प्रतिष्ठा
  12. अल्फाज – शब्द
  13. मानी – अर्थ, मतलब
  14. जुबा – जीभ, जिह्वा
  15. जायका – स्वाद
  16. झपकी गुजरती – पलक झपकते ही
  17. राब्ता – संपर्क
  18. रिहल – ठावनी, जिस पर धर्मग्रंथ रखकर पढ़ा जाता है।
  19. सजदा – सिर झुकाना, प्रार्थना करना।
  20. जबी – माथा
  21. इल्म – ज्ञान
  22. रुक्के – चिट्ठी, संदेशपत्र
  23. रिश्ते – संबंध