Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 3 पंद्रह अगस्त Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.
Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त
11th Hindi Digest Chapter 3 पंद्रह अगस्त Textbook Questions and Answers
आकलन
1.
प्रश्न अ.
संकल्पना स्पष्ट कीजिए –
(a) नये स्वर्ग का प्रथम चरण
उत्तर :
स्वतंत्रता प्राप्त करना हमारा स्वर्ग प्राप्त करने जैसे लक्ष्य था हमें अभी अनेक कार्य करने शेष हैं। कवि यह संकेत करते हैं कि स्वतंत्रता प्राप्त हो गई “अब सब काम खत्म हो गया” ऐसा सोचकर विश्राम नहीं करना है। वास्तव में अभी-अभी तो हमारा कार्य आरंभ हुआ है। हमारे देश को स्वर्ग बनाना है यही हमारा लक्ष्य है और आजादी उसका प्रथम चरण है।
(b) विषम शृंखलाएँ
उत्तर :
बड़ी कठिनाई से हमने आज़ादी प्राप्त की है। गुलामी की बेड़ियाँ तोड़ पाएँ हैं। हमारे देश की सीमा हर ओर से आज़ाद है।
(c) युग बंदिनी हवाएँ
उत्तर :
हे देशवासियो, यह ध्यान रहे कि इस विश्व में तूफान की तरह तेजी से बंदी बनाने वाली हवाएँ चल रही हैं। अर्थात कई देशों से आक्रमण का खतरा हमारे देश पर बढ़ गया है। ऐसी दुर्घटना को रोकने का उत्तरदायित्व हमारा है।
प्रश्न आ.
लिखिए –
उत्तर :
(1) शोषण से मृत है समाज
(2) कमजोर हमारा घर है।
काव्य सौंदर्य
2. आशय लिखिए :
प्रश्न अ.
“ऊँची हुई मशाल हमारी ………………………………………………… हमारा घर है।”
उत्तर :
आज़ादी प्राप्त करने के बाद हमारी जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई है। हमारा रास्ता और कठिन हो गया है। माना कि शत्रु चला गया है पर वह अपनी पराजय से अत्यंत विकल (restless) हुआ है। कोई न कोई कूटनीति उसके मन मस्तिष्क में चल रही होगी। हमारा जनसमुदाय इतने सालों की गुलामी से सामाजिक, आर्थिक एवं मानसिक रूप से कमजोर हो गया है इसलिए अपनी मशाल अर्थात अपनी सतर्कता और अधिक बढ़ा दो।
प्रश्न आ.
“युग बंदिनी हवाएँ ………………………………………………… टूट रहीं प्रतिमाएँ।”
उत्तर :
जहाँ हमने आज़ादी प्राप्त करके देश की सभी सीमाओं को स्वतंत्र कर लिया है। वही ब्रिटिश सरकार अपनी पराजय से विकल है। वह हमारे देश की उन्नति के विरूद्ध कूटनीति भी कर रही होगी। देश को जाति, धर्म, भाषा और प्रांत के नाम पर कमजोर, अलग-थलग करना जैसी समस्या देश में उत्पन्न हो सकती है।
अभिव्यक्ति
3.
प्रश्न अ.
‘देश की रक्षा-मेरा कर्तव्य’, इसपर अपना मत स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
“जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं,
वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं.” (गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’)
देश की रक्षा किसी व्यक्ति का केवल कर्तव्य ही नहीं बल्कि उसका धर्म भी होता है। व्यक्ति द्वारा कोई भी ऐसा कार्य नहीं होना चाहिए जिससे देश धर्म में बाधा पहुँचे। हमारा देश सबसे सर्वोपरि (above all) है। कोई भी लाभ और हानि हमारे देश को सीमित नहीं कर सकती।
देश के प्रति पूरी निष्ठा होनी चाहिए। देश केवल भूभाग नहीं है। देश का आर्थिक विकास व वृद्धि, साफ-सफाई, सुशासन, भेदभाव न करना, कानून का पालन करना आदि जिम्मेदारियाँ निभाना हमारा कर्तव्य है। एक जिम्मेदार नागरिक बनकर हमें ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे देश की आन, बान और शान में वृद्धि हो। हमारी राष्ट्रीय धरोहर (heritage) और सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान और रक्षा करना भी हमारा कर्तव्य है।
देश के कानून का पालन और सम्मान करना चाहिए। हमें अपने करों का समय पर सही तरीके से भुगतान करना चाहिए। देश को प्रदूषण मुक्त करने में सहयोग देना, पर्यावरण संतुलन हेतु वृक्षारोपण (plantation) करना जैसे कार्यों में रुचि दिखाना भी देश की रक्षा करना ही है; इस तथ्य को स्वयं समझना और औरों को समझाना भी हमारा कर्तव्य है।
प्रश्न आ.
‘देश के विकास में युवकों का योगदान’, इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
किसी भी देश की तीन प्रकार की संपत्ति से देश की उन्नति का आकलन लगाया जाता है। वह संपत्ति है – धन संपत्ति, युवा संपत्ति और संस्कृति संपत्ति। जिस देश के पास ये तीनों संपत्तियाँ विद्यमान हैं उस देश को तीनों लोकों का सुख प्राप्त है।
युवा देश की ऐसी संपत्ति है, जो देश को उन्नति के उच्चतम शिखर तक पहुँचा सकती है। इतिहास और शास्त्र दोनों ही इस बात के गवाह हैं, चाहे वे सतयुग, त्रेता, द्वापर के युवा हो चाहे वर्तमान काल के युवा। जो भी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सकारात्मक परिवर्तन होता है उसमें युवाओं का हिस्सा अधिकाधिक होता है।
युवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है। वे देश और समाज को नए शिखर पर ले जाते हैं। उनमें गहन (intensive) ऊर्जा और महत्त्वाकांक्षाएँ (ambitions) होती हैं। उनकी आँखों में इंद्रधनुषी स्वप्न होते हैं। उनके योगदान से देश उन्नति के पथ पर अग्रसर (proceed) होगा।
क्योंकि युवा ही वर्तमान का निर्माता और भविष्य का नियामक (regulator) होता है। अत: समस्त भारतीय युवाओं को यह संकल्प लेना चाहिए कि राष्ट्र के सम्मुख जितनी भी चुनौतियाँ हैं हम उनका डटकर सामना करेंगे।
रसास्वादन
4. स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ समझते हुए प्रस्तुत गीत का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(i) शीर्षक : पंद्रह अगस्त
(ii) रचनाकार : गिरीजाकुमार माथुर ‘पंद्रह अगस्त’ कविता कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा लिखा एक गीत है।
(iii) केंद्रीय कल्पना : स्वतंत्रता के पश्चात देश में चारों ओर उल्लास छाया है और साथ ही इस स्वतंत्रता को बरकरार रखने हेतु सावधान एवं सतर्क रहना जरूरी है यह आह्वान भी है।
(iv) रस-अलंकार : कविता में वीर रस की निष्पत्ति के साथ साथ लयात्मकता का सुंदर प्रयोग हर अंतरे में स्पष्ट झलकता है। जैसे – छोर, हिलोर (wave), डोर (string), कोर (edge) जैसे शब्दों का प्रयोग हो या दिशाएँ, हवाएँ, सीमाएँ, प्रतिमाएँ या फिर डगर, डर, घर, अमर जैसे शब्दों के प्रयोग से गेयता (singable) साध्य हुई है। ‘पहरुए सावधान रहना’ मुखड़ा हर अंतरे के बाद आया है।
(v) प्रतीक विधान : देशवासियों को देश के पहरेदार बनकर सावधान रहने की बात कवि कह रहे हैं।
(vi) कल्पना : कवि ने स्वतंत्रता को स्वर्ग का प्रथम चरण माना है और अनेकों लक्ष्य पाने की कल्पना की है।
(vii) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : ‘किंतु आ रही नई जिंदगी
यह विश्वास अमर है,
जनगंगा में ज्वार
लहर तुम प्रवाहमान रहना’
इन पंक्तियों में स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ समझाने का प्रयास कवि ने किया है। देश में चारों ओर उल्लास है, जनगंगा में ज्वार है। परंतु जब शोषित पीड़ित और मृतप्राय समाज का पुनरुत्थान होगा तभी सही मायने में देश आजाद होगा। किंतु हमारा यह विश्वास कि हमारे जीवन में एक नई शुरुआत हो गई है हमारा मनोबल बढ़ाता है और इस बल को कभी टूटने नहीं देना है। जनशक्ति की लहर बनकर प्रगति की ओर आगे बढ़ना है।
(viii) कविता पसंद आने के कारण : कविता के ये भाव मन में उल्लास भर देते हैं और कविता की गेयता कविता गुनगुनाने पर बाध्य करती हुई आनंद की प्राप्ति कराने में सक्षम है।
साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान
जानकारी दीजिए:
5.
प्रश्न अ.
गिरिजाकुमार माथुर जी के काव्यसंग्रह –
उत्तर :
धूप के धान
मैं वक्त के हूँ सामने
प्रश्न आ.
‘तार सप्तक’ के दो कवियों के नाम –
उत्तर :
प्रभाकर माचवे
भारतभूषण अग्रवाल
रस
वीर रस – किसी पद में वर्णित प्रसंग हमारे हृदय में ओज, उमंग, उत्साह का भाव उत्पन्न करते हैं, तब वीर रस का निर्माण होता है। ये भाव शत्रुओं के प्रति विद्रोह, अधर्म, अत्याचार का विनाश, असहायों को कष्ट से मुक्ति दिलाने में व्यंजित होते हैं।
उदा. –
(१) साजि चतुरंग सैन, अंग में उमंग धरि।
सरजा सिवाजी, जंग जीतन चलत है।
भूषण भनत नाद, बिहद नगारन के
नदी-नद मद, गैबरन के रलत है।
– भूषण
(२) दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसीवाली रानी थी।
– सुभद्राकुमारी चौहान
भयानक रस – जब काव्य में भयानक वस्तुओं या दृश्यों के प्रत्यक्षीकरण के फलस्वरूप हृदय में भय का भाव उत्पन्न होता है, तब भयानक रस की अभिव्यंजना होती है।
उदा. –
(१) प्रथम टंकारि झुकि झारि संसार-मद चंडको दंड रह्यो मंडि नवखंड को।
चालि अचला अचल घालि दिगपालबल पालि रिषिराज के वचन परचंड कों।
बांधि बर स्वर्ग को साधि अपवर्ग धनु भंग को सब्ध गयो भेदि ब्रह्मांड कों।
– केशवदास
(२) उधर गरजती सिंधु लहरिया, कुटिल काल के जालों-सी।
चली आ रही है, फेन उगलती, फन फैलाए व्यालों-सी।।
– जयशंकर प्रसाद
Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त Additional Important Questions and Answers
कृतिपत्रिका
(अ) पन्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
पदयांश : आज जीत की ……………………………………………………….. बने अंबुधि महान रहना। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 9-10) |
प्रश्न 1.
जाल पूर्ण कीजिए :
उत्तर :
प्रश्न 2.
विधान सत्य है या असत्य लिखिए :
उत्तर :
(i) इस जनमंथन से उठ आई है पहली रतन हिलोर। – सत्य
(ii) नए स्वर्ग का अंतिम चरण। – असत्य
प्रश्न 3.
पद्यांश का भावार्थ सरल हिंदी में लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश ‘तारसप्तक’ (सात कवियों का एक मंडल) के प्रमुख कवि गिरिजा कुमार माथुर जी की कविता ‘पंद्रह अगस्त’ से लिया गया है। कवि आज़ादी के बाद देशवासियों को संबोधित करते हुए कहते हैं – हे देशवासियो !….. हमारा देश अभीअभी आज़ाद हुआ है। अब इसकी सुरक्षा की सभी तरह की जिम्मेदारी हमारी है। इसलिए हमें और अधिक सावधान रहना पड़ेगा। स्वतंत्रता हमारे जीवन का पहला लक्ष्य था, जो अभी पूरा हुआ है। शेष उद्देश्य तो अभी भी बाकी है। कवि कहते हैं कि हमें समुद्र की तरह मन में गहराई एवं हृदय में विशालता रखनी होगी।
(आ) एद्याश पड़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
पद्यांश : विषम श्रृंखलाएँ टूटी ……………………………………………………….. तुम दीप्तिमान रहना। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 10) |
प्रश्न 1.
लिखिए :
उत्तर :
प्रश्न 2.
निम्न शब्दों के लिए पद्यांश में आए शब्द लिखिए :
(i) आँधी – ……………………………………….
(iii) मूर्ति – ……………………………………….
(iii) चंद्र – ……………………………………….
(iv) पहेरदार – ……………………………………….
उत्तर :
(i) प्रभंजन
(ii) प्रतिमा
(iii) इंदु
(iv) पहरुए
प्रश्न 3.
पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश कवि गिरिजाकुमार माथुर जी की कविता ‘पंद्रह अगस्त’ से लिया गया है। प्रस्तुत पद्यांश में कवि कह रहे हैं कि परतंत्रता (dependance) की बेड़ियाँ टूट गई हैं और आजादी की खुली हवा देश में बहने लगी है। युगों से गुलामी सहने वाले स्वतंत्र होते ही दिशाहीन, लक्ष्यहीन हो गए हैं।
विभाजन के कारण वे सीमाओं में सीमटकर अपना होश खो बैठे हैं। दुर्बल हो गए हैं। ऐसे में अधिक सतर्कता की आवश्यकता है। कहीं आपस में लड़कर हम एक-दूसरे को ही नुकसान न पहुँचा दें इस बात का ख्याल रखना होगा। चंद्र के समान शीतल रोशनी फैलाकर देशवासियों को रास्ता दिखाने का काम कवि हमें करने को कह रहे हैं।
(इ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
पद्यांश : ऊँची हुई मशाल’……………………………………….. तुम प्रवाहमान रहना। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 10) |
प्रश्न 1.
प्रवाह तालिका पूर्ण कीजिए :
उत्तर :
प्रश्न 2.
पद्यांश के आधार पर दो ऐसे प्रश्न तैयार कीजिए जिनके उत्तर निम्न शब्द हो :
(i) ज्वार : ………………………………….
(ii) लहर : ………………………………….
उत्तर :
(i) जनगंगा में क्या है?
(ii) किसे प्रवाहमान रहना है?
प्रश्न 3.
पद्यांश द्वारा मिलने वाला संदेश लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश गिरिजाकुमार माथुर जी की कविता ‘पंद्रह अगस्त’ से लिया गया है। प्रस्तुत पद्यांश में तत्काल मिली हुई स्वतंत्रता की कवि चिंता करता है इसलिए देशवासियों को सतर्क रहने का आह्वान किया है। देश में एकता, अखंडता और भाई-चारे को बनाए रखने के लिए सजग किया है।
कवि देशवासियों को सावधान रहने के लिए कहते हैं। उनका कहना हैं कि शत्रु भले ही हमारे देश को छोड़कर चला गया है, पर पलटकर वार करें तो उसके प्रत्युत्तर के लिए सतर्क रहना चाहिए। धर्म, जाति और संप्रदाय के नाम पर हमें आपसी विवाद से बचना चाहिए।
रस:
वीर रस – किसी पद में वर्णित हमारे प्रसंग हृदय में ओज, उमंग, उत्साह का भाव उत्पन्न करते हैं, तब वीर रस का निर्माण होता है। ये भाव शत्रुओं के प्रति विद्रोह, अधर्म, अत्याचार का विनाश, असहायों को कष्ट से मुक्ति दिलाने में व्यंजित (express) होते हैं।
उदा. :
(1) साजि चतुरंग सैन, अंग में उमंग धरि।
सरजा सिवाजी, जंग जीतन चलत है।
भूषण भनत नाद, बिहद नगारन के
नदी-नद मद, गैबरन के रलत है।
– भूषण
(2) दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसीवाली रानी थी।
– सुभद्राकुमारी चौहान
भयानक रस – जब काव्य में भयानक वस्तुओं या दृश्यों के प्रत्यक्षीकरण के फलस्वरूप हृदय में भय का भाव उत्पन्न होता है, तब भयानक रस की अभिव्यंजना होती है।
उदा. :
(1) प्रथम टंकारि झुकि झारि संसार-मद चंडको दंड रह्यो मंडि नवखंड कों।
चालि अचला अचल घालि दिगपालबल पालि रिषिराज के वचन परचंड को।
बांधि बर स्वर्ग को साधि अपवर्ग धनु भंग को सब्ध गयो भेदि ब्रह्मांड कों। – केशवदास
(2) उधर गरजती सिंधु लहरिया, कुटिल काल के जालों-सी।
चली आ रही है, फेन उगलती, फन फैलाए व्यालों-सी।।
– जयशंकर प्रसाद
पंद्रह अगस्त Summary in Hindi
पंद्रह अगस्त कवि परिचय :
गिरिजाकुमार माथुर जी का जन्म 22 अगस्त 1919 को अशोक नगर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। आपकी आरंभिक शिक्षा झाँसी में हुई थी। आपने लखनऊ विश्वविद्यालय से एम. ए. (अंग्रेजी) एवं एल. एल. बी. की शिक्षा प्राप्त की। कुछ समय तक आपने वकालत की तत्पश्चात दिल्ली में आकाशवाणी में काम किया। कुछ समय तक दूरदर्शन में भी काम किया और वहीं से सेवा निवृत (retired) हुए। माथुर जी की मृत्यु 10 जनवरी 1994 में हुई।
स्वतंत्रता प्राप्ति के दिनों में हिंदी साहित्यकारों में जो प्रमुख कवि थे, उनमें गिरिजाकुमार माथुर जी का नाम अग्रणी (leading) है।
पंद्रह अगस्त प्रमुख रचनाएँ :
‘मंजीर’, ‘नाश और निर्माण’, ‘धूप के धान’, ‘शिलापंख चमकीले’, ‘जो बँध नहीं सका’, ‘साक्षी रहे वर्तमान’, ‘भीतरी नदी की यात्रा’, ‘मैं वक्त के हूँ सामने’ (काव्य संग्रह), ‘जन्म कैद’ (नाटक) आदि।
पंद्रह अगस्त काव्य विधा :
यह ‘गीत’ विधा है। इसमें एक मुखड़ा (first line) होता है और दो या तीन अंतरे (stanza) होते हैं। इसमें परंपरागत भावबोध तथा शिल्प प्रस्तुत किया जाता है। कवि इस प्रकार की अभिव्यक्ति में प्रतीक, बिंब तथा उपमान का प्रयोग करता है।
पंद्रह अगस्त विषय प्रवेश :
प्रस्तुत गीत में कवि ने स्वतंत्रता के हर्ष और उल्लास को उत्साह पूर्वक अभिव्यक्त (expressed) किया है। कवि देशवासियों एवं सैनिकों को अत्यंत जागरूक रहने का आवाहन कर रहा है।
पंद्रह अगस्त सारांश :
(कविता का भावार्थ) : प्रस्तुत कविता आज़ादी के बाद देश के प्रत्येक नागरिक को संबोधित करती है। कवि देशवासियों को पहरेदार के समान सावधान रहने के लिए कहता है। कवि का कहना है कि हे देशवासियो, यह हमारी विजय की पहली रात है। आज से देश की सभी तरह की सुरक्षा का उत्तरदायित्व हमारा है। हमें उस निश्चल दीपक की भाँति (जो विपरीत समय में भी अपनी रोशनी से अंधकार को ललकारता रहता है।) अपने देश पर आने वाली सभी समस्याओं को दूर भगा देना है।
कविता में प्रथम स्वर्ग का तात्पर्य – पहला लक्ष्य पहली प्राप्ति है, जिसे हमने सामूहिक प्रयास से प्राप्त किया है। कवि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शेष कार्यों की ओर संकेत करते हैं। हमारे सामने अनेक लक्ष्य शेष हैं। देशवासियों ने शारीरिक, मानसिक और आर्थिक पीड़ा को बहुत लंबे समय तक सहन किया है।
देश अपने अपमान को अभी भुला नहीं पाया है। इसलिए आज़ादी के बाद हमारी जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई है। हमें समुद्र की भाँति मन में गहराई और विशालता रखनी होगी। हमें पहले से भी और अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है।
बड़े संघर्ष के बाद मिली आज़ादी के बाद भी अभी बड़ी-बड़ी चुनौतियाँ अपना ताल ठोक (challenging) रही हैं। हमारे देश पर अनेक देश की ओर से खतरे मँडरा रहे हैं। ब्रिटिश सरकार ने हमें कमजोर करने के लिए कई प्रकार के जाल बिछाए हैं। हमें जाति, धर्म और प्रांत के नाम पर अलग-अलग बाँटने का प्रयास किया है। यह हमारी प्रगति के लिए रुकावट है।
आज ब्रिटिश सरकार का सिंहासन ध्वस्त हो गया है। लोगों में आक्रोश है। अगर हम सावधान न रहे तो हम आपस में ही लड़कर एक दूसरे को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसलिए इस-हर्ष-विषाद (griet) की घड़ी में हमें अत्यंत सावधान रहने की आवश्यकता है। जिस प्रकार चाँद की रोशनी अँधेरे में भी पथिक (passenger) को रास्ता दिखाती है ठीक उसी प्रकार हे पहरुए तुम्हें भी सबको रास्ता दिखाना है।
कवि का कहना है कि यह सही है कि हमें स्वतंत्रता मिल गई है। शत्रु सामने से चला गया है पर पीछे से वह कौन सा खेल खेलेगा हमें पता नहीं है। इससे बचने के लिए हमें पहले से भी और अधिक सतर्क रहना होगा। सालों-साल की गुलामी ने हमारे जन समुदाय को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सभी ओर से अत्यंत दुर्बल बना दिया है।
किंतु हमारा यह एक विश्वास, है कि हमारे जीवन की एक नई शुरुआत हो गई है, यह सोचकर हमारा मनोबल बढ़ जाता है। जैसे समुद्र की लहरें एकजुट होकर समुद्र में ज्वार ला देती हैं हमें भी उन समुद्री लहरों की तरह ही एक-साथ होकर आगे बढ़ते रहना है। हे पहरुए ! उपरोक्त कार्य के लिए तुम्हें अत्यंत सावधान रहना होगा।
पंद्रह अगस्त शब्दार्थ:
- पहरुए = पहरेदार, प्रहरी
- पतवार = नाव खेने का साधन
- अंबुधि = सागर, समुद्र
- प्रभंजन = आँधी, तूफान
- इंदु = चंद्रमा
- दीप्तिमान = प्रकाशमान, कांतिमान, प्रभायुक्त
- पहरूए = पहरेदार, प्रहरी (security person),
- अचल = स्थिर (stable),
- प्रथम = पहला (first),
- छोर = किनारा (end),
- विगत = बीता हुआ कल (past),
- पतवार = नाव खेने का साधन (paddle),
- अंबुधि = समुद्र, सागर (ocean),
- प्रभंजन = आँधी, तूफान (storm),
- इंदु = चंद्रमा (moon),
- दीप्तिमान = प्रभायुक्त, प्रकाशमान (radiant)