Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest अपठित काव्यांश Notes, Questions and Answers.
Maharashtra State Board 11th Hindi अपठित काव्यांश
1. पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
मुख से न कभी उफ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं,
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग निरत नित रहते हैं,
शूलों का मूल नशाने को,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को।
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके आदमी के मग में?
खम ठोंक ठेलता है जब नर,
पर्वत के जाते पाँव उखड़।
प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए –
उत्तर:
पद्यांश- सच है विपत्ति जब ……………………………………………… पर्वत के जाते पाँव उखड़। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र.111) |
प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए –
(i) विपत्ति में ऐसा साहस नहीं
(ii) वीर पुरुष के ताल ठोकने का परिणाम –
उत्तरः
(i) विपत्ति में ऐसा साहस नहीं – वीर पुरुष की राह में अवरोध बनकर खड़ रहने का
(ii) वीर पुरुष के ताल ठोकने का परिणाम – पर्वत का घमंड चकनाचूर हो जाता है
प्रश्न 3.
पद्यांश का भावार्थ सरल हिंदी में लिखिए
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश राष्ट्रकवि ‘दिनकर’जी की कविता ‘सच्चा वीर’ से लिया गया है। इस पद्यांश में कवि ने सच्चे वीर के लक्षण बताए हैं।
विपत्ति केवल डरपोक व्यक्ति को ही भयभीत करती है। कायर विपत्ति से डरकर अपने पाँव मार्ग से पीछे खींच लेता है। लेकिन वीर पुरुष विपत्ति के सामने डटे रहते हैं। संकट में ही वीर पुरुष के धैर्य की परीक्षा होती है। बड़ा से बड़ा संकट आने पर भी वीर पुरुष घबराते नहीं।
वे अपना धैर्य और संयम बनाए रखते हैं। वे आने वाली विघ्न – बाधाओं के सामने चट्टान की तरह अडिग खड़े रहते हैं। वीर पुरुष विकट परिस्थितियों में भी संकटों से संघर्ष करते हैं और उनसे बाहर निकलने का रास्ता ढूँढ़ निकालते हैं। वे संकटों पर विजय हासिल करके ही दम लेते हैं।
वीर पुरुष संकटों से कभी प्रभावित नहीं होते। वे संकटों में न तो कभी ऊफ करते हैं और न ही संकटों के सामने कभी झुकते हैं। मंजिल की राह में आने वाली विघ्न – बाधाओं को जड़ से समाप्त कर उन पर विजय पाने के लिए वे निरंतर प्रयत्न करते रहते हैं।
संसार में ऐसी कोई भी बाधा नहीं है, जो वीर पुरुष की राह में अवरोध बनकर खड़ी होने का साहस कर सके। वीर पुरुष जब ताल ठोंककर साहस से आगे बढ़ते हैं, तो उनके सामने पर्वत भी नहीं ठहर पाते। वे पर्वत के घमंड को चकना चूर कर आगे बढ़ते हैं।
2. पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी भर देखी
पकी-सुनहली फसलों की मुसकाने
– बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी भर सुन पाया
ध्यान कूटती किशोरियों की कोकिल कंठी तान
– बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी भर सूंघे
मौलसिरी के ढेर-ढेर से ताज़े-टटके फूल
– बहुत दिनों के बाद
प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए –
उत्तरः
(ii) पद्यांश में आया फूल का नाम –
उत्तरः
पद्यांश में आया फूल का नाम – मौलसिरी
पद्यांश: बहुत दिनों के बाद ………………………………….. ताज़े-टटके फूल। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 115) |
प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए –
(i) फसलों की विशेषता –
(ii) फूलों की विशेषता –
उत्तर:
(i) फसलों की विशेषता – पकी-सुनहली
(ii) फूलों की विशेषता – ढेर सारे और ताज़े-टटके
प्रश्न 3.
पद्यांश में वर्णित प्राकृतिक सुषमा का वर्णन कीजिए।
उत्तरः
प्रस्तुत पद्यांश कवि नागार्जुन की कविता ‘बहुत दिनों के बाद’ कविता से लिया गया है। कवि बहुत दिनों के बाद अपने गाँव लौटा। गाँव की प्राकृतिक सुषमा देखकर कवि का मन झूम उठा। कवि ने गाँव के खेतों में पकी-सुनहली फसलें देखी। गाँव की किशोरियाँ धान कूट रही थीं।
उनके कंठ से निकले मधुर गीत कोकिल के मधुर तान की तरह प्रतीत हो रहे थे। इन मधुर गीतों को सुनकर वह संतुष्ट हो गए। कवि ने अनुभव किया कि शहरी बनावटी जीवन की अपेक्षा प्राकृतिक सुषमा से युक्त इस ग्रामीण जीवन की सादगी कितनी सुकून देती है। गाँव के मौलसिरी के ताजे-ताजे सुगंधित फूलों के ढेर देखकर वह प्रफुल्लित हुआ।
इस प्रकार गाँव में चारों ओर प्राकृतिक सुषमा बिखरी हुई थी जो कवि को तृप्ति और आनंद प्रदान कर रही थी।
3. पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए
तू क्यों बैठ गया है पथ पर?
ध्येय न हो, पर है मग आगे,
बस धरता चल तू पग आगे,
बैठ न चलने वालों के दल में तू आज तमाशा बनकर!
तू क्यों बैठ गया है पथ पर?
मानव का इतिहास रहेगा
कहीं, पुकार-पुकार कहेगा –
निश्चय था गिर मर जाएगा चलता किंतु रहा जीवन भर!
तू क्यों बैठ गया है पथ पर?
जीवित भी तू आज मरा-सा
पर मेरी तो यह अभिलाषा
चितानिकट भी पहुँच सकूँ अपने पैरों-पैरों चलकर!
प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए –
उत्तरः
पद्यांशः तू क्यों बैठ गया ………………………………… अपने पैरों-पैरों चलकर! (पाठ्पुस्तक पृष्ठ क्र. 118) |
प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए –
(i) कवि द्वारा मनुष्य को पूछा गया सवाल –
(ii) कवि की अभिलाषा –
उत्तरः
(i) कवि द्वारा मनुष्य को पूछा गया सवाल – ‘तू क्यों बैठ गया है पथ पर’
(ii) कवि की अभिलाषा – ‘चलते-चलते अपनी चितानिकट पहुँचने की’
प्रश्न 3.
पद्यांश का संदेश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘तू क्यों बैठ गया है पथ पर’ कविता में कवि ने जीवन-पथ पर चलते – चलते हताश और निराश हो बैठ जाने वालों से कहा है कि जीवन में सतत् क्रियाशील बने रहना आवश्यक है। लक्ष्य से विमुख होकर कायरों की तरह निष्क्रिय बैठे रहना अनुचित है। ऐसे व्यक्ति जीवित रहते मृतक के समान हैं।
समाज में उपहास के पात्र बने ऐसे लोग निरर्थक जीवन जीते हैं। इसके विपरीत उत्साही व्यक्ति दृढ़ संकल्प और मजबूत इरादे के साथ निरंतर आगे बढ़ता है और अपना लक्ष्य प्राप्त करता है। उसे न तो मृत्यु का भय होता है, न ही पथ से गिरने की चिंता।
ऐसे शूरवीर और साहसी का गुणगान इतिहास भी करता है। वे सदा के लिए इतिहास में अमर हो जाते हैं। उनके आदर्श हमेशा जीवित रहते हैं। आने वाली पीढ़ी उनका अनुसरण करती है।
इस तरह प्रस्तुत कविता के द्वारा कवि ने मनुष्य को हताशा और निराशा त्यागकर लक्ष्य के प्रति आस्थावान बने रहने और जीवन पथ की चुनौतियों से संघर्ष करते हुए निरंतर आगे बढ़ते रहने का संदेश दिया है।
4. पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
हो-हो भैया पानी दो,
पानी दो गड़धानी दो;
जलती है धरती पानी दो
मरती है धरती पानी दो
हो मेरे भैया..!!
अंकुर फूटे रेत में
सोना उपजे खेत में,
बैल पियासा, भूखी है गैया,
नीचे न अंगना में सोन-चिरैया,
फसल-बुवैया की उठे मुडैया,
मिट्टी को चूनर धानी दो
हो मेरे भैया…!!
प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए –
उत्तर:
प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए –
(i) पानी बरसने का धरती पर परिणाम –
(ii) पानी बरसने पर मिट्टी को मिलेगी –
उत्तर:
(i) पानी बरसने का धरती पर परिणाम – तपती धरती को राहत मिलेगी, फसलें उगेंगी।
(ii) पानी बरसने पर मिट्टी को मिलेगी – धानी चूनर
प्रश्न 3.
पद्यांश का भावार्थ सरल हिंदी में लिखिए।
उत्तरः
प्रस्तुत पद्यांश, गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ जी की कविता ‘पानी दो’ से लिया गया है। कवि बादल भैया से पानी की माँग कर रहे है।
नीरज जी बादल भैया से कह रहे हैं, ‘हे बादल भैया, तुम धरती पर जल बरसाओ, धरतीवासियों को गुड़धानी दो। पानी के अभाव में सबकुछ सूना है। तुम जल बरसाकर तपती धरती और सूखती वनस्पतियों को जीवनदान दो। तुम्हारे जल बरसाने से रेत में अंकुर फूटेंगे, खेतों में हरियाली छा जाएगी।
खेतों में फसलें लहलहा उठेगी। हे बादल भैया, पानी के बिना किसान का बैल प्यासा है और गाय भूखी है। किसान का आँगन सूना हो चुका है। अब उसमें सोन-चिरैया फुदकने नहीं आती। हे बादल, जल बरसाओ, जिससे किसान के घर में खुशहाली आए। उसकी टूटी-फूटी मडैया पर छाजन पड़ सके। हे बादल, पानी बरसाकर तुम धरती को हरी-भरी कर दो, मिट्टी को हरी चुनरिया पहना दो।
5. पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,
घर अँधेरा देख तू, आकाश के तारे न देख!
एक दरिया है यहाँ पर, दूर तक फैला हुआ,
आज अपने बाजुओं को देख, पतवारें न देख।
अब यकीनन ठोस है धरती, हकीक़त की तरह,
यह हकीकत देख, लेकिन खौफ़ के मारे न देख।
प्रश्न 1.
चौखट पूर्ण कीजिए –
कवि ने देखने के लिए कहा है – कवि ने न देखने के लिए कहा है
(1) ………………………………. – (1) ……………………………….
(2) ………………………………. – (2) ……………………………….
(3) ………………………………. – (3) ……………………………….
उत्तरः
कवि ने देखने के लिए कहा है। – कवि ने न देखने के लिए कहा है
(1) घर के अँधेरे को – (1) आकाश के तारे
(2) अपनी बाजुओं को – (2) सड़कों पर लिखे नारे
(3) हकीकत को – (3) पतवार
प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए –
(i) आकाश के तारे’ देखने से कवि का तात्पर्य –
(ii) धरती के बारे में कवि की राय –
उत्तरः
(i) ‘आकाश के तारे’ देखने से कवि का तात्पर्य है सच्चाई से दूर भागना।
(ii) धरती के बारे में कवि की राय है कि धरती ठोस है।
प्रश्न 3.
पद्यांश द्वारा मिलने वाली प्रेरणा अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तरः
प्रस्तुत पद्यांश कवि दुष्यंत कुमार जी की लिखी गजल ‘दीवारें न देख’ से लिया गया है। कवि मनुष्य के जीवन की हताशा, निराशा को समाप्त कर उसे एक नई दृष्टि देना चाहता है। आम तौर पर मनुष्य का झुकाव चमक-दमक की ओर अधिक होता है। उसमें जीवन के यथार्थ से टकराने की हिम्मत नहीं होती।
अपने घर के अँधेरे को वह नजरअंदाज कर देता है। स्वयं को शक्तिहीन मानकर अपनी जीवन नौका पतवार के भरोसे छोड़ देता है।
कवि कहते हैं इस जीवन रूपी समुंदर में मुसीबतों के तूफान तो आते रहते हैं। मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी बाजुओं के बल पर, स्वयं पर भरोसा रखकर जीवन सागर को पार करें। मनुष्य अपनी बाजुओं को देखें और पतवार की बैसाखी के सहारे चलना छोड़ दे।
जीवन का यथार्थ धरती की तरह ठोस है। इस वास्तविकता से जुड़े रहकर ही जीवन – संग्राम लड़ा जा सकता है। जीवन की सच्चाई को जानते हुए खौफ में क्यों जीए मनुष्य? उसे एक योद्धा की तरह यथार्थ से लड़कर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा कवि ने दी है।